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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

2. विखंडनवाद

प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |

अथवा
विखण्डनवाद किसे कहते हैं? साहित्य - चिन्तन के क्षेत्र में विखण्डनवाद की मान्यताओं का तर्कपूर्ण विवेचन कीजिए।

उत्तर - 

'विखंडनवाद'

विखंडनवाद आधुनिक समीक्षा की विशिष्ट प्रवृत्ति के रूप में प्रतिष्ठित हुआ। हिन्दी साहित्य पं मध्यवर्ग के विखंडन की मुख्यतः दो शैलियाँ कहानी के अन्तर्गत आती हैं। इनमें एक शैली है कहानी क नायक विरोधी शिल्प तथा दूसरी है कहानी के लगभग हर पात्र का विरुपन। वैसे तो ये दोनों शैलियों अपने मूल चरित्र में विखंडनात्मक है। यह विखंडनात्मकता एक नई शिल्प प्रविधि है, जिसका सम्बन्ध विखंडनवाद से है। आज के इस बदलते हुए समय में सिद्धान्त और व्यवहार के सारे आदर्श सारे मान ध्वस्त और धूल-धूसरित पड़े हैं। विखंडनात्मकता सबसे उपयुक्त और कथ्यानुरूप शिल्प- प्रविधि है। प्रविधि अपनी तत्व प्रकृति में बहुत ही रचनात्मक और गतिशील है।

विखंडनात्मकता व्यंग्यात्मकता से तत्वतः भिन्न है, बल्कि यह कहा जाये कि विपरीत है। व्यं: कई बार निषेधात्मकता किंवा विडम्बनात्मकता सबसे ऊपर आ जाती है, वहाँ क्षोभ होता है लेकिन उ विनोद का पुट रहने के कारण उसकी तल्खी प्रशमित सी हो जाती है। व्यंग्य में विदूप विरुपन भी होत लेकिन वह धीरे-धीरे एक मजा लेने की सी चीज बनता चला जाता है। व्यंग्य कई बार गतिहीनता प्रतिध्वनि देने लग जाता है। यह व्यंग्य की रचनात्मक सीमा है, जिस पर कई लोगों ने कई तरह से विचार किया। मसलन स्वयं प्रकाश ने परसाई जी पर 'साथ' सक्रिय और सन्नद्ध' शीर्षक से लिखे अपने संस्मरणात्मक आलोचनात्मक लेख में लिखा है- "व्यंग्य एक तिरछे, कांच वाली खिड़की है जिसमें से समाज का विद्रूप दिखाई देता है। व्यंग्यकार सत्यान्वेषी नहीं झूठान्वेषी ही हो सकता है। व्यंग्य लेखक लगभग नकारात्मक ही होता है। व्यंग्य उपन्यास जैसी विधा के लिए एक अपर्याप्त प्रविधि है। उपन्यास में 'लेखक का युग, उस युग का मनुष्य अपेक्षाकृत अधिक पूर्णता के साथ चित्रित होता है, अपने सुख-दुःख अपनी उदात्तता - करुणा, अपने तर्कातीत आवेगों और जाती स्मृतियों से आविष्ट व्यवहार, अपनी पूरी माया- ममता और मूर्खता महानता के साथ, जैसा प्रेमचन्द में होता है। व्यंग्य उपन्यास में यह सब नहीं आ सकता व्यंग्य के पुट लिए उपन्यास होना आसान है, व्यंग्य उपन्यास लगभग अनिवार्यतः सर्वनकारवादी हो जाता है। जैसे रागदरबारी हो गया था जैसे नरक-यात्रा या कोई भी अन्य और ऐसा दरअसल इसलिए होता है कि नये विचार की प्रस्तावना मात्र खंडन से पूरी नहीं होती, खंडन के बाद मंडन भी आवश्यक माना जाता है। यह लेखक के प्रति पाठक की अस्सी प्रतिशत सहमति का द्योतक है। अतः व्यंग्य की यह अपनी प्रविधिगत सीमा है। यह जो सीमा है, वह परसाई की उतनी नहीं, जितनी व्यंग्य की है।

विखंडनवाद में जो व्यंग्य भी होता है, खंडन भी होता है, नकार भी होता है, लेकिन उसमें विनोद या मसखरापन नहीं होता। उसमें मूल्यहीनता, बेहयाई, बेईमानी, बेमुरौवती इत्यादि के प्रति लेखक का न केवल क्षोभ बल्कि बेइन्तहा घृणा, वितृष्णा होती है। वह वीभत्स और अश्लीलता का वर्णन या अंकन मजे ले-लेकर या मजा लेने के लिए नहीं करता बल्कि उसके प्रति एक गहरी हिकारत और हेयता वहाँ होती है। इसलिए व्यंग्य में जो पीड़ा-बोध या बिडम्बनात्मकता पाई जाती है, उसके स्थान पर यहाँ एक धिक्कार बोध और चुनौती या बेचैनी का भाव अन्तर्निहित होता है। इसीलिए विखंडनात्मकता शिल्प- प्रविधि का अन्तिम प्रभाव न खंडनात्मक होता है न नकारात्मक बल्कि एक प्रकार की प्रबोधात्मकता वहाँ पाई जाती है। इस विचार से सम्भवतः इसी अर्थ में विखंडनवाद मार्क्सवाद का एक अग्रगामी विकास है, उसका नया परिप्रेक्ष्य है।

विखंडन एक लेखकीय रणनीति है। एक शिल्पगत रणनीति है। इस रणनीति के तहत यथार्थ का, सत्य का एक काफी अच्छी-खासी दूरी तक विखंडन कर सकते हैं, यह कहना सत्य से परे है लेकिन विखंडन एक पलायन है या सरोकारों से बचना है। मेरी दृष्टि में विखंडन की शिल्प- प्रविधि रचना के मार्फत यथार्थ या फिर सत्य की ऐसी आलोचना है जहाँ सरोकार स्पष्टतः कथित न हो, लेकिन वे शब्दों, पंक्तियों, परिच्छेदों के यानी कि रचना के पाठ के रिक्त स्थानों में छिपे होते हैं। विखंडन की शिल्प- प्रविधि ने आजचना का काम काफी हल्का कर दिया। लेखक अपने पाठ में बहुत अधिक चालाक या शातिर होता है, ऐसी स्थिति में पाठ के विखंडन की आलोचना विधि से भारी मशक्कत के बाद ही लेखक का असल मन्तव्य पकड़ में आ जाता है, लेकिन सच्चाई यह भी है कि ऐसे चालाक लेखकों को पकड़ने का इससे बढ़िया कोई उपाय नहीं। पाणधारि, आलोचना से अच्छे-अच्छों के भूत भागते हैं। कलावाद की असलियत जानने इससे बढ़िया कोई और औजार नहीं।

विखंडनवाद आलोचनात्मक यथार्थवाद का पर्याय नहीं है। आलोचनात्मक यथार्थ में लेखक के कुछ पूर्वग्रह या पूर्व निर्धारित मानदंड होते हैं और रचना में साफ उभरकर आते भी हैं। विखंडनवाद में पूर्वग्रह न रचना के अन्दर होते हैं, न बाहर ( नेपथ्य में) वे दरअसल लेखक या कि पाठ के अन्तर्मन में होते हैं। लेखक या पाठक के इन मनोगत आग्रहों को पूर्वग्रह नहीं एक मूल व्यवस्था कहना चाहिए। विखंडनवाद के मूल में लेखक की यही मनोगत मूल्य व्यवस्था कम करती दिखाई देती है। यहाँ पहले से तय कुछ नहीं सिवाय इसके कि लेखक यथार्थ के इस नये रूप में बेतरह क्षुब्ध है इसे सारे 'प्रहसन' से घृणा है। लेकिन सकी यह घृणा अपने चरित्र को नकारने में नहीं उसे पूरा स्पेस देते हुए उसके बदले हुए रूप को गर करने में व्यक्त करती है। उजागर करने की इस प्रक्रिया मे उसका चरित्र जो कभी कथनायक हुआ ता था, अब प्रतिनायक सा बनकर सामने आता दिखाई देता है। कथनायकत्व का बिम्ब या तो टूट गया उलट गया है। कहानी का केन्द्रीय या मुख्य पात्र वह अब भी है लेकिन पाठक को अब उससे अनुभूति या आत्मीयता अनुभव नहीं होती बल्कि वितृष्णा होती है। आज के मध्यवर्ग को ट्रीट करते हुए दी-लेखक की यह एक नई रणनीति है। फिलहाल यह प्रविधि पर्याप्त कारगर साबित हो रही है। समय ने की धड़कन यहाँ काफी ऊँची आवाज में सुनी जा सकती है।

लेकिन आज एक सत्य यह भी है कि अब कहानीकार इस विखंडन की प्रविधि का अतिक्रमण कर सके किसी विकल्प की तलाश में है। विखंडन की प्रविधि समय और परिस्थिति की माँग है, यह सच है कि लेकिन सच यह भी है कि व्यंग्य की तरह विखंडन की प्रविधि की भी एक सीमा है। वह हालांकि विखंडन की सीमा नहीं है। विखंडन व्यंग्य से काफी आगे की स्थिति है। लेकिन आखिर विखंडन मौजूदा समय की सबसे कारगर रणनीति है, कि केवल रणनीति से युद्ध नहीं जीते जाते। एक समय आता है जब हमें तय करना होता है कि हम अपने सैनिकों को तथा जन सामान्य को लम्बे समय तक कैसे बांधे रख सकते हैं। उन्हें बांध रखने के लिए कुछ स्वप्नों की, भविष्य के एक ज्यादा सकारात्मक नक्शे की, एक अपेक्षाकृत बेहतर सौन्दर्यलोक की सम्भावना के विचार की दरकार होती है। इस विचार के अभाव में जीता हुआ युद्ध भी निरर्थक साबित हो सकता है, या यों कहें कि युद्ध जीत लेने के बाद भी चीजें अपनी पूरी और पक्की पकड़ से बाहर रह सकती हैं। विखंडन की रणनीति अंतिम लक्ष्य नहीं है विचार इस रणनीति के मूल में है, और अग्रगामी भी है। लेकिन यहाँ रणनीति विचार की स्थापना नहीं है, वह सिर्फ एक तात्कालिक उपाय है। हमारी इस समय की कहानी इस दृष्टि से समय के पर्याप्त समानान्तर चल रही है। लेकिन रचना समय के बराबर ही नहीं रहकर उससे आगे भी चलनी चाहिए। समय से आगे चलने में ही उसकी सार्थकता है। समय के साथ चलना उसकी सफलता है तो समय से आगे निकलना उसकी सार्थकता।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

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